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अनवेष द्वारा अनुसंधान

शब्दजाल महाजंजाल

शब्दजाल महाजंजाल है और सब गोलमाल है। हमें दो प्रकार से सिखाया पढ़ाया जाता है। एक: पहले (सतयुग) बहुत अच्छा था। आज का समय खराब (कलियुग) है। दूसरा: आदमी असभ्य पाषाण युग में रहता था। धीरे धीरे वह सभ्य बना और सुखी होता गया। अब सच क्या है, हम सच को कैसे जानें ? वैज्ञानिक कहते हैं, ऊर्जा का घनत्व पदार्थ है। ऋषि -मुनि कहते हैं, वह ऊर्जावान एक से अनेक होकर विखंडित होगया। घनत्व सच कि विखंडन सच ? सच क्या है, अब हम सच को कैसे जानें ? वैज्ञानिक यह भी कहते हैं ब्रह्माण्ड का विस्तार निरंतर हो रहा है। विरोधाभास देखिए, ऊर्जा का घनत्व पदार्थ और पदार्थ का विस्तार! घनत्व भी और विस्तार भी दोनों एक साथ फिर यह सच कि वह सच या ऊर्जा कही और... से आ रही है ? धार्मिक लोग कहते हैं, जो मोक्ष पाते हैं। वे उसमें विलय होते जा रहे हैं। फिर उससे अलग ही क्यों हुए थे। अनेक होना सच कि विलय होना सच ? समझ से बाहर है और सब गोलमाल है। नशा उपलब्ध करवाने वाले ही नशा मुक्ति केंद्र चलाते हैं। न्याय देने वाले अन्याय के पक्षधर बन जाते हैं। चरित्र का पाठ पढ़ाने वाले अनैतिक सम्बन्धों में लिप्त पाए गए हैं। कही-कही तो रक्षक ही भक्षक बनते दिखाई पड़ जाते हैं। राज के आकांक्षी ही अराजक काम में लिप्त हैं। आश्चर्य तब होता है, जब बीमारी उत्पन्न करने वाले ही बीमार का उपचार कर रहे होते हैं। कितने ही कलयुगी गुरु अपवाद बन रहे हैं और कोई उनके लिए आचार-संहिता नहीं ला रहा है। सबसे ख़तरनाक बात तो यह है कि जब सुधार चाहने वाले लोग ही बगलें झांकने लगते हैं। समझ में नहीं आ रहा सच क्या है और झूठ क्या है ? आपकी कुछ समझ में आया है तो मित्र इस किंचित पर भी कृपा किजिए। गौतम बुद्ध को संसार में दुःख दिखाई दिया तो चार्वाक को केवल सुख ही सुख दिखाई देता है। महावीर को संग्रह अनुचित लगा, महाजन को संग्रह प्रिय है। शंकराचार्य को जगत भ्रम दिखता है। माध्वाचार्य को बैकुंठ दिखाई देता है। कई गुरुजी की नैया में बैठकर वैतरणी पार करना चाहते हैं। कुछ को भक्ति से, कुछ को युक्ति से, कुछ को ज्ञान से रचयिता तक पहुंचने का मार्ग दिखाईं देता है। बाकी सबकी आहार, निंद्रा, भय से अभय होने और मैथुन की पूर्ति की व्यवस्थाएं हैं। कृपया करके आप ही बताइए, सच और स्पष्ट क्या है ?